गुरुवार, 15 जनवरी 2015

SUPPORT THIS INITIATIVE AGAINST PARDA-PRATHA

Sunita Sharma[chairperson Gaytri women welfare & protection Society (Rgd)‏] HAS STARTED A GREAT INITIATIVE AND SEND THIS TO P.M. OF INDIA .SUPPORT HER AND HER SOCIETY .HER E-MAIL IS -sunitaskoshish@gmail.com
गायत्री महिला कल्याण एवं सुरक्षा समिति ( रजिस्टर्ड)                          
                         कानून बनाने हेतु  न्याय याचिका 
प्रधान मंत्री ,
भारतीय सरकार ,
नई देहली । 
       विषय - पर्दा प्रथा को मानवीय एवं मौलिक अधिकारों का हनन घोषित करते हुए इस प्रथा को समाप्त करने के लिए कानून बनाना और लागू करवाना , डोमेस्टिक वॉयलेंस के तहत करवाई और सजा लागू करना ।  
         संदर्भ - भारतीय सविधान आर्टिकल 14, 15,19, 21 एवं मानवीय अधिकारों के हनन के अंतर्गत । 

माननीय महोदय , 
हम इस विषय पर पिछली सरकारों को भी निवेदन करते आ रहे हैं और निराशा ही हाथ लगी । किन्तु अब जिस तरह आप ने नारी की गरिमा के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए शौचालय निर्माण को राष्ट्रीय अभियान बना कर समस्याओं से निपटने की अपनी प्रतिबद्धता स्थापित  की है, उससे उत्साहित होकर हम आप को इस विषय पर निवेदन कर  रहे हैं । अगर उक्त नारी अभिशाप को आपके द्वारा कानून बना कर समाप्त करवा दिया जाता है तो वर्ष २०१४- १५ भारतीय नारी के इतिहास में स्वर्ण युग के रूप में  लिखा जाएगा । जिस प्रकार हमारी आज की  पीढ़ी  सती प्रथा\ बाल विवाह\ विधवा पुनः विवाह को इतिहास का हिस्सा मान कर पढ़ते हुए इस के पीछे के व्यक्तियों को श्रद्धा से देखती है, उसी प्रकार आज की सरकार को भविष्य की पीढ़ियाँ श्रद्धा से देखेंगी । ये शब्द न तो अतिश्योक्ति है, न तथ्य हीन । 
                  हम मानते हैं कि सामाजिक रूढ़ियों \ कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए जनांदोलन चाहिये, किन्तु पिछले राष्ट्रीय ही नहीं, अंतराष्ट्रीय तजुर्बों से यही निष्कर्ष निकलता है कि कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए कानून बना कर जनांदोलन चलाये गए और सफलता प्राप्त हुई । जैसे -
(1) सती प्रथा - सती प्रथा को समाप्त करने के लिए माननीय राजा राम मोहन राय ने उस वक्त की  सरकार से कानून बनवा कर जनांदोलन चलाया और सती प्रथा समाप्त करने में भारत ने सफलता पाई । 
(2) विधवा पुनर्विवाह - ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जी के प्रयासों से ये कानून बना और भारतीय नारी का अभिशाप समाप्त हुआ । 
(3) बाल विवाह को रोकने के लिए कानून बनाने का सहारा लिया गया । 
(4) कन्या भ्रूण हत्या पर कानून - जब जनजागरण प्रभावी सिद्ध नहीं हुआ तो भारतीय सरकार को कन्या भ्रूण हत्या को रुकवाने के लिए कानून बनाना पडा । और इसको  लागू करने के लिए सरकार को सख्ती भी करनी पड रही है । इससे स्पष्ट होता है कि केवल जनजागरण से काम नहीं चल सकता । 
(5 ) राष्ट्रीय ही नहीं, अंतराष्ट्रीय पटल पर भी अनेकों ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं । जिसमें कानून बना कर कुप्रथाओं को समाप्त किया गया । 
हमारी माँग का आधार   -
क़ानूनी परिप्रेक्ष्य में हमारी माँग का आधार -
(क) पर्दा प्रथा मानवीय अधिकारों का हनन है - इस विश्व वसुंधरा को देखने के लिए ईश्वर ने पुरुष की भाँति नारी को भी दो आँखें बिना पक्षपात के दी हैं, किन्तु नारी की आँखों पर पर्दा डलवा कर उससे देखने का मानवी अधिकार छीन लिया जाता है,  जो सीधा-सीधा मानवीय अधिकारों का हनन है । 
       मानवीय ही नहीं, अपितु ये अधिकार छीनकर नारी को पशु से भी बदतर साबित किया जाता है । सामान्य स्थिति में पशुओं की आँख पर भी पर्दा नहीं डाला जाता, वो तभी डाला जाता है, जब पशु को उसकी इच्छा के विपरीत कहीं ले जाया जाता है और शादी जैसे पवित्र बंधन के बाद भी नारी की हालत गली के कुत्ते-बिल्ली से बदतर कर दी जाती है । 
(ख  ) पर्दा प्रथा भारतीय सविधान के आर्टिकल १४, १५, १९ और विशेष रूप से २१  का हनन है-जब भारतीय नारी को पर्दा प्रथा के कारण देखने के स्वतंत्र  एवं समान  अधिकार से वंचित किया जाता है और सरकार उसे प्रोटेक्शन नहीं दे पाती तो सीधे सीधे आर्टिकल १४ का हनन होता है  

(ii)  पर्दा प्रथा लिंग (जेंडर)  के आधार पर  डिस्क्रिमिनेशन है, जो सीधे-सीधे आर्टिकल १५  का हनन है । 
(iv) पर्दा प्रथा विशेष रूप  से  सीधे-सीधे आर्टिकल 21 राइट ऑफ़  पर्सनल लिबर्टी  का हनन है | 
 (v ) पर्दा प्रथा नेचुरल जस्टिस का हनन है । 
सामाजिक परिप्रेक्ष्य में हमारी माँग का आधार - 
(क)  हो सकता है पर्दा प्रथा आपात काल का  धर्म हो ,किन्तु आज की परिस्थितियों में ये औचित्यहीन ही नहीं, समस्त समाज और मानवता की  हानि करने वाली है । 
 (ख) प्रायः गंदगी को ढका जाता है - जब  भारतीय नारी की आँखों को ढकवाया जाता है तो शायद पर्दा प्रथा का पक्षधर समाज   नारी को  गंदगी का दर्जा देने  के लिए इसकी पैरवी करता है  |
(ग) समाज में अच्छी वस्तु को बुरी चीजों से बचाने \ सुरक्षित रखने के लिए ढका जाता है , यदि समाज के इस प्रथा के पक्षधर नारी को गंदगी नहीं मानते तो क्या उन को अपने चरित्र पर संदेह है कि घर की  ही बहु-बेटी रूपी नारी को देख कर उन के चरित्र का हनन हो जायेगा | यदि ऐसा है तो वो अपनी  आँखें ढकें, न कि नारी की | ऐसे समाज की मानसिक कमजोरी की सजा नारी क्यों भुगते ?
(घ ) मुख वो छिपाते हैं, जो गलत काम करते हैं| शादी जैसे पवित्र बंधन डालते ही यदि नारी को मुख छिपाना पड़ता है तो स्पष्ट है कि शादी दुष्कर्म है, जिस कारण शादी करते ही नारी को मुख छिपाने का आदेश हो जाता है । यदि शादी दुष्कर्म है तो उसमें सहभागिता तो नारी पुरुष दोनों की है, फिर नारी अकेली क्यों मुख छिपाए ? और ऐसी सोच से समाज की व्यवस्था जो गृहस्थ को तपोवन के अलंकार से सुशोभित करती है, वो चकना - चूर हो जाएगी । 

पर्दा प्रथा के नुकसान -   जहाँ एक ओर खुलेआम देश में मानवीय और संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों के हनन से भारतीय गरिमा शर्मसार होती है वहीं --
(i)   नारी के अंदर मानसिक दासता की भावना विकसित होती है | 
(ii)    जब बच्चा अपनी माँ को घूँघट में देखता है तो उसके अंदर नारी को हेय दृष्टि से देखने की भावना पनपती है । जब वह बच्चा पुरुष होता है तो वो खुद को पुरुष के रूप में उत्तम मानता है और यही भावना शादी के बाद घर में आई  बहू से घरेलू मार -कुटाई \उत्पीड़न का  कारण बनती है | और जब वह बच्चा कन्या होती है तो माँ -चाची ताई को मुख छिपाए देख कर वो खुद को हीन मानने लगती है और हर अत्याचार तो अपनी नीयति मानने लगती है । 
(iii) नारी का सर्वांगीण विकास और सर्वतोमुखी उन्नति में पर्दा प्रथा बाधक है | 
(iv) पर्दा प्रथा से नारी की गरिमा गिरती है| गरिमा गिराने का अर्थ है अपनी ( मानव समाज \ राष्ट्र ) की उद्गम शक्ति का विनाश जो घाटे ही घाटे का सौदा  है | 

सावधानियाँ -
जब भी कोई कदम किसी विशेष जाति \ जेण्डर के हित के लिए उठाए जाते हैं तो शातिर लोगों द्वारा उन के दुरुपयोग की गुंजाइश भी बनी रहती है, इसीलिए शुभ कार्य करते वक्त रक्षा विधान की व्यवस्था की जाती है। जोश के साथ होश का पुट लगाया जाता है । इस कानून को बनाते वक्त निम्नलिखित प्रिकॉशन्स ली जा सकती हैं -
(अ) माना तब जाये कि नारी को आँखें \ मुख छुपाने का निर्देश दिया गया है, जब उस के साथ उसके सुसराल पक्ष के पुरुष साथ हों । 
(आ) माना तब जाये कि नारी को आँखें \ मुख छुपाने का निर्देश दिया गया है, जब उसके साथ उसके सुसराल पक्ष की नारियाँ साथ हों और उनके भी आँखें-मुख पर्दे के पीछे ढके हुए हों ।
(इ ) अगर एक अकेली नारी पर्दा करके समाज में विचरण करे तो उसे सुसराल का निर्देश नहीं माना जाना चाहिए।  ऐसे में यदि कोई स्वयं भोगी की शिकायत प्राप्त हो या किसी संस्था द्वारा साक्ष्य पेश किये जायें तो सुसराल वालों को पहले केवल समझाया जाये या उन से वस्तुस्थिति को समझा जाये। 

सजा - पहली दो बार जुर्माना किया जाये और तीसरी बार सजा सुनायी जाए | 

धर्म और प्रथा - पहले चरण में उन धर्मों में कानून लागू किया जाए, जहाँ धर्म पर्दे को मान्यता नहीं देते या परदे का निर्देश नहीं देते।  
    दूसरे चरण में जहाँ धर्म परदे के निर्देश देते हैं, उस धर्म अधिकारियों से विचार विमर्श किया जाए और वो खुद तय करें कि वो अपनी औरतों को आगे बढ़ाना चाहते हैं या नहीं |  

   हम आप से आशा करते हैं कि शीघ्र- अतिशीघ्र कानून बनाकर, आप इस अभिशाप को समाप्त करवाकर नारी जाति जो दुर्गा का अंश है, जो माँ भारती की संतान है,  जो जननी है, उसे समाज के कुछ मूढ़ों द्वारा नारी को हैंडीकैप (अपंग) बनवाये जाने  से रुकवायेंगे |
भवदीय ,

1 टिप्पणी:

Jyoti Singh ने कहा…

Iske liye jaldi see hi koi law Hanna chahiye. HM females kb tk is prtha ko sahegi...