रविवार, 17 अगस्त 2014

रोयी रोयी भी हैं


जिसके सम्मोहन में पागल ब्रजधाम भी हैं,ब्रजवासी भी हैं।
जिसकी प्रेम दिवानी राधा रानी भी हैं,मीरा दासी भी हैं।
पहले राधा संग रास रचाया,फिर विरह का पाठ पढ़ाया
प्रेम की रज़ रचाकर दुनिया,खोई खोई सी,रोयी रोयी भी हैं।

5 टिप्‍पणियां:

Jyoti khare ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावुक अभिव्यक्ति

जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाऐं ----
सादर --

कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------

Unknown ने कहा…

आभार

डा श्याम गुप्त ने कहा…

सुन्दर ..सुन्दर...सुन्दर ...

डा श्याम गुप्त ने कहा…

वो कृष्ना है ...वो कृष्ना है...

Unknown ने कहा…

shyam Gupta ji आभार