बुधवार, 2 अप्रैल 2014

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ...भाव अरपन चौदह.....बरवै छंद........ ....डा श्याम गुप्त ...

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ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...
              

                     मेरे नवीनतम प्रकाशित  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नवगीत आदि  मेरे  ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---   सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है .....भाव-अरपन .....चौदह.....बरवै छंद........

आदि शक्ति पद पंकज, धरि ध्यान,
बरवै छंद कहै चहूं, मन सुख मान |

जीवन नौका पापमय,पार न जाय,
श्याम भजे घनश्याम को, पार लगाय |

नश्वर माया लूटिकै, चोर कहायं ,
राम नाम जो लूटिहौ, पाप नसायं|

तेल पाउडर बेचिकें, अति सुखु पायं,
जनता हीरो कहि रही, वे इठ्लायं |

अरथहीन  तुकबंदी, हमहि न भाय,
कविता साँची करौ , मन हरखाय |

कत्था चूना पान मुख ,बहुरि सुहाय ,
अरबुद श्याम बने मुख,कछु न सुहाय |

बानी वृथा जो रसना, रस न बहाय ,
जगु जीते बानी सुघर, रस बरसाय |

कन  कन  में सो बसि  रह्यो, ढूंढ न पे,
मंदिर मस्जिद चरच में, ढूंढन  जाय |

पर पीरा में नहिं बहे, जे दृग नीर,
कहा श्याम दीदा धरे, जो बे पीर ||

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