बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

लेख


             नारी का सशक्तीकरण
 तलाक सिर्फ आदमी का हक नहीं हो सकता क्योंकि इसके साथ जुडां हैं एक औरत और उसके बच्चों का भविष्य । साल 2011 में ही मुसलिम समाज में लगातार एक तरफा तलाक के तीन मामलें सामने आएं थे । जिसमें पत्नी को बताएं बिना तलाक को मनजुरी प्रदान की फतवा जारी करने वाले दारूल उलूम देवबंद सहाब ने । पुरूष प्रधान समाज में धर्म के नाम पर नारी के दर्द की कहानी कोई नई नहीं हैं । मजहब के नाम पर जहां मुसलिम समाज में तलाक,हलाला और इददत जैसी कुप्रथा और मोलानाओं के बेतुके फतवे है। तो वही हिन्दु समाज में पर्दा प्रथा, बाल विवाह जैसी परम्परावादी सोच व खाप पंचायते हैं जो नारी के लिए तालिवानी फरमान जारी करती रहती हैं । इन कुरीतियों को ढोने के लिए आज भी मजबूर किया जाता हैं औरत को । आदमी सारे धर्म-मजहबों में खुद को सुरक्षित रख कर महिलाओं को बलि का बकरा बनाता चला आ रहा हैं ।
  आखिर महिलाओं के साथ ये अन्याय क्यों ? क्योंकि आज तक औरत चुप रह कर सब कुछ सहती आ रही हैं । लेकिन 2012 में इस खामोशी को तोडतें हुए । भारतीय मुसलिम महिला आंदोलन के बैनर तले एक तरफा तलाक,हलाला और इददत जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ आवाज बुंलद की थी ।
  इसकी गुज सुनाई पडी 21 सितंबर 2012 लखनऊ में (दीन की बेटियां मांग रही इंसाफ ) विषय पर आयोजित काँन्फ्रेंस में । जिसे मुसलिम महिला आंदोलन और राष्ट्रीय महिला आयोग व्दारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था । मुसलिम मंहिलाएं और बेटियां ही अब अपने खिलाफ जारी बेतुके फतवों का विरोध करेगी । देवबंदी फतवों पंचायती फरमानों और आँल इंडियां मुसलिम पर्सनल लाँ बोर्ड की महिलाओं के खिलाफ जबरन किए गएं फैसलों की मुखालफत की जाएंगी । एक तरफा तलाक और हलाला को पूरी तरह बंद करने की पैरवी की जाएंगी । ये निष्कर्ष निकल कर सामने आएं थे । यह इक्कीसवी सदी की आधुनिक नारी हैं । जो अपने हक की लडाई लडना जानती हैं । मलाला और दामनी के लिए सघर्ष इसी जंग का एक हिस्सा थें। जिसमें महिलाओं और लडकियों ने अपनी शक्ती का प्रदर्शन कर पुरूष प्रधान समाज को चेतावनी दी के वह औरत को कमजोर समझने की भूल कदा भी न करे ।यह नारी सशक्तीकरण का दौर हैं ।
  वैसे भी हमने किसी धर्म प्रधान देश का निर्माण न कर सविंधान प्रधान देश का निर्माण किया हैं । जहां एक तरफ हमारे देश में सभी को मजहबी आजादी हैं तो वही दूसरी और कानून सब के लिए बराबर हैं । आदमी और औरत को समान अधिकार प्रदान किए गएं हैं । अगर महिलाएं कानून का दरवाजा खटखटाती हैं तो उन्हें इंसाफ अवश्य मिलेगा । मौलानाओं,खाप पचायतों के व्दारा धर्म बताकर उनकें ऊपर हो रहें जुल्म का अंत अवश्य होगा । जहां एक और नारी सशक्तीकरण की और बड रही हैं । वही सरकार ने भी पिछले कुछ सालों में महिलाओं के हितों को ध्यान में रखते हुएं कानून में संशोधन कर नारी को अवला से सवला बनाने के प्रयास तेज कर दिए हैं ।

तरूण कुमार (सावन)
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3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

कानून ने महिलाओं को पुरुषों के सामान अधिकार दिए हैं किन्तु वह सामाजिक परिस्थितियों को न कभी पलट सका है न पलट पायेगा और इसी कारण महिलाओं ने भी स्वयं को पुरुषों से पिटने व् मार खाने को समर्पित किया है .आपकी सोच व् प्रस्तुति सराहनीय है .

Madan Mohan Saxena ने कहा…

वाह, खूबसूरत,.भावपूर्ण लाजवाब रचना

बेनामी ने कहा…

REALLY THE REAL CONDITION OF WOMAN IS VERY BAD .YOU HAVE POSTED VERY RELEVANT POST ON THIS BLOG .THIS IS YOUR FIRST POST ...WELCOME & THANKS