गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

श्याम स्मृति -----प्यार , स्त्री -पुरुष एवं स्त्री की तपस्या ..डा श्याम गुप्त ...

                            कुछ पुरुष बच्चे ही होते हैं, मन से ..पर मानने को तैयार नहीं होते | वे विशेष रूप से अटेंशन चाहते हैं हर दम अतः कुछ न कुछ ऊटपटांग व तंग करने वाली हरकतें करते रहते हैं पत्नी व स्त्री भावना के विरुद्ध जो झगड़ों में भी परिवर्तित होजाती हैं  || कई बार संतान के आने पर भी ऐसा होता है | ’प्यार से आदमी को काबू में करना ही औरत की तपस्या है, साधना है, त्याग है | जो पुरुष की तपस्या भंग भी कर सकती है मेनका-विश्वामित्र की भांति, वैराग्य भी भंग कर सकती है शिव-पार्वती की भांति और उसे तपस्या-वैराग्य में रत भी कर सकती है तुलसी—रत्ना की भांति |  काश सभी पुरुष..... नारी की इस भाषा को समझ पाते | इस भावना व क्षमता की कदर कर पाते |

3 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति राजनीतिक सोच :भुनाती दामिनी की मौत आप भी जाने अफ़रोज़ ,कसाब-कॉंग्रेस के गले की फांस

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

सही कह रहे हैं, पुरुष हमेशा से ही पहले माँ के पल्‍लू से फिर पत्‍नी के आंचल में और फिर बेटी की छांव में रहना चाहता है।

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद शालिनी जी ...
धन्यवाद अजित जी ----सही...यह माया-बंधित जीव, पुरुष-तत्व का पुरुषगत अहं ( ईगो व इड ) है जो सुरक्षा-आवरण चाहता है, सुलभ संबंधों का हो या स्वयं अहंभाव का ...