सोमवार, 19 दिसंबर 2011

डॉ.ओम निश्‍चल जी द्वारा स्वर्गीय संध्या जी को विनम्र श्रद्धान्जलि

अशोक  शुक्ला जी  द्वारा  प्रस्तुत  '' तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते....ब्लागर डा0 सन्.''.पोस्‍ट संध्‍या के बारे में पढ़ी । मेरे भी उनसे मैत्री और ताल्‍लुकात थे। उन्‍होंने मेरे कहने पर '' बना लिया मैने भी घोंसला '' की पांडुलिपि तेयार की थी और उसे भारतीय ज्ञानपीठ मे प्रकाशन हेतु विचारार्थ भेजा था। इसे पढ़कर मैंने अनूकूल संस्‍तुति की थी और उम्‍मीद थी कि संग्रह ज्ञानपीठ से ही छपेगा। पर किन्‍हीं कारणों से यह संग्रह वहॉं से नहीं आ सका और बाद में यह राधाकृष्‍ण से छपा। मेरी उनसे पटना और दिल्‍ली में रहते हुए बराबर बातचीत होती रहती थी। पटना से जुलाई में वाराणसी में आने के बाद से उनसे संपर्क नहीं रहा और इसी बीच यह हादसा हो गया। पिछले दिनों उनके निधन के समाचार से स्‍तब्‍ध रह गया। वे अपनी मॉं की सेवा में किस तरह जुटी रहती थीं, यह बात वे मुझे बताती थीं। एक बार वे अपनी बेटी और पतिदेव गुप्‍ता जी के साथ दिल्‍ली आई थीं तो मुझसे इलाहाबाद बैंक में मिलने आईं। काफी बातें हुईं। अपना ब्‍लाग बनाया तो भी सूचना दी। उन्‍हें पढ़ता भी रहता था। साहित्‍य और दीगर मसलों पर उनसे बातें भी होती थीं।  उनके न रहने का शून्‍य हमेशा सालता रहेगा। ईश्‍वर दिवंगत आत्‍मा को शांति दे। 


                                                                    डॉ.ओम निश्‍चल

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